जब भी सेबो का सीजन आता है तो बात चल उठती है हिमाचल के बागवानों की| देखा जाये तो ये सच है की हिमाचल की अर्थव्यवस्था दो बातों पर निर्भर करती है, वहाँ का टूरिज्म और सेबों के बाग़|
आज तक हिमाचल के सब बागवान सेब की पैदावार बेचते थे APMC मंडियों में, पर हाल ही में सिर्फ एक छोटे से हिस्से में व्यापर करता है अदानी जैसा बड़ा बिज़नेस ग्रुप | सालाना लगभग 10 लाख टन सेब बिकता है हिमचाल में, जिसमे से केवल 20 हज़ार टन खरीदता है अदानी एग्रीफ्रेश, फिर कैसे कोई ये आसानी से कह सकता है की अदानी ही ज़िम्मेदार है सेब के गिरते रेट को लेकर| आज भी लगभग 9 लाख टन सेब जाता है APMC मंडियों में बिकने के लिए|
बीते पिछले सालो के मुकाबले देखा जाये तोह इस बार काफी ज़ादा मात्रा में सेब की पैदावार होने की आशंका है, इसके कारण APMC मंडियों में भी कई लोगों का मानना है कि सेब के रेट कम होंगे इस बार| यह तो साधारण से अर्थशात्र का विषय है, जहा सप्लाई डिमांड से अधिक होती है, वहां रेट कम होते है, तोह क्या इसमें भी लोग अदानी एग्रीफ्रेश को दोष देंगे |
ये देखना बहुत ही ज़रूरी विषय है की APMC मंडी में सेब बेचने के लिए एक बागवान को सेबो की सफाई, धुलाई, छटाई और अन्य कामों के लिए अपनी जेब से पैसा खर्चना होता है, जबकि अदानी एग्रीफ्रेश की फैसिलिटी में सब मशीनो द्वारा किया जाता है बिना किसी अतिरिक्त खर्चे के| साथ ही मंडियों में बैठे कई कमिशन एजेंट्स की जेबो को भी भरना पड़ता है सही दाम मिलने के लिए|
अगर खर्च की बात करें तोह 10-15 रूपए प्रति किलो देना पड़ता है सेब की ग्रेडिंग से लेकर पैकिंग पर, वही पे ये सारा खर्चा कम हो जाता है जब एक बागवान सेब लेकर जाता है अदानी एग्रीफ्रेश के पास|
APMC मंडियों में एक धारणा और बानी हुई है कि, जितना बड़ा बागवान होगा उसे उतना ही बेहतर रेट मिलेगा, छोटे बागवानों को लेकर बहुत भेदभाव किया जाता है वहाँ पर| अदानी एग्रीफ्रेश इस भेदभाव को ख़तम करते हुए सब बागवानों को समान प्रकार का अवसर देता है| चाहे तोह 1000 किलो सेब हो या सिर्फ 50 किलो, सबको एक ही रेट दिया जाता है, APMC मंडियों के विरुद्ध जहाँ अधिक सेब बेचने पर मिलता है ज़ादा रेट|
ये APMC मंडियां आज केवल कमिशन एजेंटो के अनुसार चलती है, बजाय की किसानो के अनुसार| कई ऐसे उदाहरण भी अब देखने को मिलते है जहाँ पेमेंट कई दिनों तक बागवानों तक नहीं पहुँचती, जबकि आज तक अदानी एग्रीफ्रेश ने समय पर हर बागवान को उसका हक़ दिया है| इनका उददेश्य साफ है की हर बागवान को उसकी मेहनत का फल समय पर मिले और किसी भी प्रकार का भेदभाव ना किया जाये, पर फिर भी कई लोगो को ये सच चुभने लगा है |