Wednesday, October 9, 2024
No menu items!
Homeट्रेन्डिंग्“मोदी” मानहानि मामले में राहुल गांधी को 2 साल की सज़ा

“मोदी” मानहानि मामले में राहुल गांधी को 2 साल की सज़ा

राहुल गांधी को गुजरात की एक अदालत ने 2019 के मानहानि मामले में गुरुवार को दोषी ठहराया – उनकी ‘सभी चोरों का नाम मोदी ही होता है’ वाली टिप्पणी, 2019 के राष्ट्रीय चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार जिले में की गई थी। गांधी को गुजरात के सूरत की अदालत ने दोषी पाया, जो कि प्रधान  मंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। अदालत ने गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाई लेकिन उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया ताकि वे फैसले की अपील कर सकें।

गांधी को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (मानहानि से निपटने) के तहत दोषी ठहराया गया था, जिसके तहत एक व्यक्ति (जो दूसरे को बदनाम करता है) को दो साल तक के साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।

फैसला सुनाए जाने के वक्त राहुल गांधी कोर्ट में मौजूद थे।

 

2019 का मानहानि का मामला क्या है?

गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गाँधी के खिलाफ़ एक आपराधिक मामला दायर किया और दावा किया कि गांधी ने अपनी टिप्पणी से मोदी समुदाय को बदनाम किया है।

गांधी की टिप्पणी फ़रार हीरा व्यापारी नीरव मोदी के संदर्भ के बाद आई। कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने पूछा था “नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी… इन सबका उपनाम मोदी कैसे है? सभी चोरों का उपनाम मोदी कैसे हो सकता है?”

2019 में, जब मामला दायर किया गया था, तो राहुल गांधी ने इसे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा उन्हें ‘चुप’ कराने का एक कदम बताया था।

कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि जिसे दो साल या उससे अधिक की अवधि के लिए किसी भी अपराध के लिए सजा सुनाई जाती है, उसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत तत्काल निष्काशन  का सामना करना पड़ता है। अधिनियम का एक प्रावधान जिसने योग्यता से तीन महीने की सुरक्षा प्रदान की थी, उसे 2013 में “अल्ट्रा वायर्स ”लिली थॉमस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था।

हालांकि, गांधी के मामले में सूरत की अदालत ने, जिसने उन्हें दोषी घोषित किया था, खुद उनकी सजा को 30 दिनों के लिए निलंबित कर दिया था ताकि उन्हें अपनी कानूनी टीम के अनुरोध पर अपने फैसले को चुनौती देने का अवसर मिल सके। इसका मतलब यह है कि गांधी की अयोग्यता एक महीने के बाद शुरू हो जाएगी, जब तक कि वह उस अवधि के भीतर अपीलीय अदालत – इस मामले में एक सत्र अदालत – से दोषसिद्धि (और न केवल सजा) पर रोक लगाने में सक्षम हो जाते हैं।

सर्वोच्च न्यायलय में सूरत कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की गयी है जिसमे जन प्रतिनिधित्वा कानून के सेक्शन 8(3) की संवैधानिकता पर सवाल उठाया गया है। याचिका में कहा गया है की प्रतिनिधि को ऐसे मामलो में अयोग्य घोषित करने से पहले उसकी भूमिका और चरित्र पर ध्यान दिया जाना चाहिए और बिना इन अंकों पर विचार किये अयोग्यता घोषित करना असंवैधानिक है।

इस पूरे मामले में सरकार, संसद और अदालत के संचालन पर कई तरह के प्रश्न सामने आते हैं। पहला कि क्या अदालत ने यह फैसला एक उदाहरण रखने के लिए दिया की देश के न्याय तंत्र के आगे हर नागरिक सामान है और विपक्ष के प्रमुख नेता होने के नाते राहुल को इस बात की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए थी कि वह किसी भी समुदाय को अपने भाषणों या किसी दुसरे माध्यम से ठेस न पहुँचाएं। संसद की कार्यप्रणाली के ऊपर याचिका के अनुसार यह सवाल उठाया जा चुका है कि उन्हें निष्कासन के पहले प्रतिनिधि की भूमिका और चरित्र का मूल्यांकन करना चाहिए। सरकार को ले कर विपक्ष की ओर से निरंतर यह आरोप लगाये जाते हैं कि न्यायालय की गतिविधियों और फैसलों में उनका हस्तक्षेप होता है और राहुल गाँधी के खिलाफ़ यह फैसला भी केवल विपक्ष को दबाने के लिए सरकार द्वारा जबरन करवाया गया है।

 

और पढ़ें:- वसुधैव कुटुम्बकम – भारत की G20 अध्यक्षता

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments